यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Tuesday, August 25, 2009
फूट पड़े तन-मन से सोमरसी छंद
आज बहुत दिनों के बाद नीरवजी का गीत पढ़ने को मिला। मजा आ गया।सांसों के आंगन में झूम गई गंध
फूट पड़े तन-मन से सोमरसी छंद
नयनों के प्रष्ठ बने कविता के बंद
मौसम ने लिख दिए हैं कुमकुमी निबंध
गुलमोहरी जंगल में हुई गीत भोर
किऱणों की नई ग़ज़ल बांच रहे मोर।
इसके बाद मकबूल जी की ग़ज़ल और मुनीन्द्र नाथ चतुर्वेदी के विचार तथा राजमणिजी द्वारा प्रेषित रचना पासवानजी की अच्छी लगी। मेरी बधाई?
भगवान सिंह हंस
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1 comment:
बहुत उम्दा!
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