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Tuesday, August 25, 2009

एक सार्थक विचार

भाई मुनीन्द्र नाथ विचार अच्छा है। भारत सरकार की ता-उम्र सेवा करने के बाद वो सुख सुविधाओं से वंचित होना, खासतौर से उम्र के इस पड़ाव पर वाकई कष्ट- दायक है। सरकार अगर हमारी है, हमारे द्वारा है तो यह विचार सकारी लोगों को काम करने के प्रेरणा- दायक हो सकता है। आज काफ़ी दिनों बाद नीरव जी ने धमाकेदार एंट्री ली है। गीत बहुत अच्छा है। आज शेरी भोपाली की एक ग़ज़ल प्रस्तुत है।
उनसे हमें कुछ काम नहीं है
दिल को मगर आराम नहीं है।

मेरी तबाही, मेरा मुक़द्दर
आप पे कुछ इल्ज़ाम नहीं है।

इश्क है ऐसा आलम जिस में
सुबह नहीं है, शाम नहीं है।

हुस्न के जलवे मांगने वालो
इश्क की दौलत आम नहीं है।

हम को न अपना कह के पुकारो
ये तो हमारा नाम नहीं है।

इतना भी क्या शेरी से तकल्लुफ
ऐसा तो वो बदनाम नहीं है।
मृगेन्द्र मक़बूल

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