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Sunday, August 30, 2009

ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी

ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी
फ़िज़ा महकी महकी, हवा महकी महकी।

वो आंखों में काजल, वो बालों में गजरा
हथेली पे उसके हिना महकी महकी।

ख़ुदा जाने किस किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा, वो सबा महकी महकी।

सवेरे- सवेरे मेरे घर पे आई
ऐ हसरत वो बादे- सबा महकी महकी।
हसरत जयपुरी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

3 comments:

Vinay said...

हम तो दीवाने हैं इस ग़ज़ल के
--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम

परमजीत सिहँ बाली said...

badhiya prastuti

Maqbool said...

vinay nazar ji aur paramjit bali ji,
aap donon kaa shukriyaa.
maqbool