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Friday, August 28, 2009

सलीकेदार हज़ल

भई पंडित जी हास्य ग़ज़ल तो काफ़ी लोग कहते हैं मगर जिस सलीक़े से आप कहते हैं उसका जवाब नहीं। बेहतरीन हज़ल है। बधाई। आज भाई राजमणि जी ने भी सुंदर रचना प्रस्तुत की है। उनको भी साधुवाद।
आज अशोक मनोरम जी ने भी ग़ज़ल कहने की कोशिश की है। कोशिश अच्छी है। अभी कुछ तराशना पड़ेगा। वो चाहें तो प० सुरेश नीरव से इस्लाह कर सकते हैं। वैसे अगर चाहें तो बन्दा भी हाज़िर है। ज़रूरी ये है लगे कि लगे रहिये।
मृगेन्द्र मक़बूल

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