नीरव जी कल की शाम एक यादगार शाम रही। अभी तक खुमारी जहन पे तारी है। आज व्लॉग पर राजमणिजी ने कैफी आजमी की बहुत बढ़िया कविता दी है और आपने मधु मिश्रा जी यानी हमारी भाभी जी की कविता देकर पुण्य कार्य किया है। मकबूलजी ने बशीर साहब की गजल का इंतखाब बहुत संजीदगी से किया है। प्रदीप कुमार शुक्लाजी भी अब धीरे-धीरे खुलते जा रहे हैं। हां मनोरम जी कुछ रफ्तार नहीं पकड़ पा रहे.शायद कुछ ज्यादा व्यस्त हैं। या फिर अस्त-व्यस्त हैं। पथिकजी की रचना और विचार सेभी वाकिफ हुआ हूं, ऐसा दौर सभी की ज़िंदगी में आता है। अपना भी ऐसा ही दौर चल रहा है। मगर क्या करें? जिंदगी जिंदा दिली का नाम है...
भगवान सिंह हंस
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