ग़णेशोत्सव के अवसर पर नई दिल्ली में 26 अगस्त 2009 को रसिक श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ एक कवि सम्मेलन जिसमें डा.क़ीर्ति क़ाले, डा. सरोजिनी प्रीतम, पं. सुरेन्द्र दुबे (जयपुर), महेन्द्र शर्मा,नन्द किशोर अकेला (रतलाम),राजगोपाल सिंह, डा.अरविन्द चतुर्वेदी व रमेश गंगेले ने कविता पाठ किया . देर रात तक रसिक् श्रोता कविताओं के सागर में गोते लगाते रहे और कविता का भरपूर आनन्द लेते रहे. कवि सम्मेलन का प्रारम्भ डा.कीर्ति काले ने सरस्वती वन्दना से किया.तदुपरान्त रमेश गंगेले ने ओजस्वी कविता प्रस्तुत की. उसके बाद डा. सरोजिनी प्रीतम ने मनोरंजक हंसिकाएं सुनायीं. फिर डा. अरविन्द चतुर्वेदी ने हास्य रस की वर्षा करते हुए अपनी हिंग्लिश भाषा की कविताओं से सभी को लोट-पोट कर दिया. गीतकार राजगोपाल सिंह ने दो गीत व गज़लों का सस्वर पाठ करके श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.महेन्द्र शर्मा ने एक बार फिर रुख हास्य व्यंग्य की तरफ मोड़कर कवि सम्मेलन में पधारे द्वारका के रसिक जनों को बांधे रखा. रतलाम से पधारे नन्द किशोर अकेला ने पहले हास्य-पूर्ण आत्मकथ्य और फिर काव्य से सभागार को रसमय कर दिया.फिर काव्य-मंच संभाला संचालिका डा.कीर्ति काले ने और दो भाव पूर्ण गीत सुनाकर अद्भुत प्रशंसा अर्जित की . डा. कीर्ति ने अपनी दो नयी रचनायें प्रस्तुत कीं. मधुर सम्वेदनाओं से ओत-प्रोत इन गीतों - 'जब भी मन की माला फेरी,मर्यादा ने आंख तरेरी' तथा " तब हृदय के एक कोने में कोई कुछ बोल जाता है" को बहुत सराहा गया. अंत में पं.सुरेन्द्र दुबे ने व्यंग्य व हास्य का गठ्बन्धन करते हुए श्रोताओं की वाह वाही लूटी. ( ऊपर चित्र में – डा.अरविन्द चतुर्वेदी काव्य पाठ करते हुए, चक्षुओं के साथ ही श्रवण सुख हेतु उपलब्ध है वीडिओ पर डा.अरविन्द चतुर्वेदी )
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Saturday, September 5, 2009
कवि सम्मेलन
ग़णेशोत्सव के अवसर पर नई दिल्ली में 26 अगस्त 2009 को रसिक श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ एक कवि सम्मेलन जिसमें डा.क़ीर्ति क़ाले, डा. सरोजिनी प्रीतम, पं. सुरेन्द्र दुबे (जयपुर), महेन्द्र शर्मा,नन्द किशोर अकेला (रतलाम),राजगोपाल सिंह, डा.अरविन्द चतुर्वेदी व रमेश गंगेले ने कविता पाठ किया . देर रात तक रसिक् श्रोता कविताओं के सागर में गोते लगाते रहे और कविता का भरपूर आनन्द लेते रहे. कवि सम्मेलन का प्रारम्भ डा.कीर्ति काले ने सरस्वती वन्दना से किया.तदुपरान्त रमेश गंगेले ने ओजस्वी कविता प्रस्तुत की. उसके बाद डा. सरोजिनी प्रीतम ने मनोरंजक हंसिकाएं सुनायीं. फिर डा. अरविन्द चतुर्वेदी ने हास्य रस की वर्षा करते हुए अपनी हिंग्लिश भाषा की कविताओं से सभी को लोट-पोट कर दिया. गीतकार राजगोपाल सिंह ने दो गीत व गज़लों का सस्वर पाठ करके श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.महेन्द्र शर्मा ने एक बार फिर रुख हास्य व्यंग्य की तरफ मोड़कर कवि सम्मेलन में पधारे द्वारका के रसिक जनों को बांधे रखा. रतलाम से पधारे नन्द किशोर अकेला ने पहले हास्य-पूर्ण आत्मकथ्य और फिर काव्य से सभागार को रसमय कर दिया.फिर काव्य-मंच संभाला संचालिका डा.कीर्ति काले ने और दो भाव पूर्ण गीत सुनाकर अद्भुत प्रशंसा अर्जित की . डा. कीर्ति ने अपनी दो नयी रचनायें प्रस्तुत कीं. मधुर सम्वेदनाओं से ओत-प्रोत इन गीतों - 'जब भी मन की माला फेरी,मर्यादा ने आंख तरेरी' तथा " तब हृदय के एक कोने में कोई कुछ बोल जाता है" को बहुत सराहा गया. अंत में पं.सुरेन्द्र दुबे ने व्यंग्य व हास्य का गठ्बन्धन करते हुए श्रोताओं की वाह वाही लूटी. ( ऊपर चित्र में – डा.अरविन्द चतुर्वेदी काव्य पाठ करते हुए, चक्षुओं के साथ ही श्रवण सुख हेतु उपलब्ध है वीडिओ पर डा.अरविन्द चतुर्वेदी )
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3 comments:
Bahut rochak aur hasya se paripoorn..
accha laga sun kar....Lord Ganesha..
agar 'word verification' hata dein to aur accha ho jayega blog.
@ 'अदा' जी,
आपको प्रस्तुति पसन्द आई.धन्यवाद.
@ 'अदा' जी,
आपको प्रस्तुति पसन्द आई.धन्यवाद.
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