आज पूरे एक सप्ताह बाद जयलोकमंगल कर रहा हूं। लगातार बाहर रहने के कारण...। मगर देखा कि भाई अनिल,अरविंद चतुर्वेदी,प्रदीप शुक्ला,मकबूलजी,राजमणिजी और वेदना उपाध्याय ने अपना योगदान बनाए रखा और मशाल को बुझने नहीं दिया। इधर राजेन्द्र अवस्थी जी के देहावसान ने काफी व्यथित किया। और नए साल के कार्यक्रमों ने काफी व्यस्त रखा। दूरदर्शन के लिए दो कार्यक्रमों को लिखा और आप लोगों की दुआ से एक आधे घंटे की फिल्म मेरे जीवनव्रत्त पर गूंजते स्वर के नाम से डी.डीं भारती पर 31 दिसंबर को दिखाई गई। और फिर इसे 01 जनवरी को प्रातः भी रिपीट किया गया। खैर नए साल की सभी को बधाई।
आज एक नई कविता पेश करता हूं-
संपादकजी की शादी
एक हमारे दुर्दांत दोस्त चंपालाल साधक
चिरकुट टाइम्स के संपादक
सेहत से महीन, दिमाग से जहीन,मिजाज़ से शौकीन.
आदमी नमकीन है दोस्तों के प्यारे हैं
क्योंकि अच्छा कमाते हैं ऊपर से क्वारे हैं
समाज में अच्छा खासा प्रभाव है,ज़िंदादिल स्वभाव है
बस बेचारे को एक अदद बीबी का अभाव है
बताते हुए राह-दोस्तों ने दे डाली सलाह कि जहांपनाह
अब की इतवार में
विवाह का विज्ञापन दिया जाए अखबार में
संपादकजी को आईडिया भाया
अगले इतवार को विवाह का विज्ञापन आया-
एक सभ्य-सुशील पचास वर्षीय टकले-हकले लड़के को वधु चाहिए। लड़का जितना कमाता है उससे ज्यादा लुटाता है
समाज में सत्कार है
पेशे से पत्रकार है
जाति,धर्म,उम्र और लिंग का कोई बंधन नहीं
इच्छुक आत्माएं तुरंत संपर्क करें।
जो पहले आएगा वो पहले मौका पाएगा
नोटः प्रार्थी को छह महीने प्रशिक्षण काल में रखा जाएगा
और अनुभवी केंडीडेट को महत्व दिया जाएगा
गे गोत्र के लोगों को अलग से देखा-परखा जाएगा
फटाफट संपर्क करें- वरः चंपालाल साधक, चिरकुट टाइम्स के संपादक
मकान नं.-420-चोरगली,गंदेनाले के पास,जिलाः देवास
विज्ञापन ने रंग दिखाया
एक जगह से कन्या दर्शन का न्यौता आया
संपादकजी ने अपनी आदत के अनुसार
पहले अपने स्टाफ को सहेजा
और मौकाए बारदात पर भेजा
सबसे पहले क्राइम रिपोर्टर ने डिस्पैच भेजा
सर जय हिंद।
मैंने मुआइना कर लिया है
लड़की अलबेली है,निराली है
पीछे से पुलिस चौकी आगे से कोतवाली है
वारदात की फाइल है
पूरी मुन्नी मोबाइल है
आप अपने क्वारेपन की सीमा खुशी-खुशी लांघ सकते हैं
दिहाड़ी,हफ्ता और मंथली कुछ भी बांध सकते हैं
आप कहें तो केस आगे बढ़ालूं
मामले को परत-दर-परत खंगालूं
वैसे लड़की के जो संबंधी सगे हैं
सब-के-सब गे हैं
इसके बाद साहित्यिक संपादक ने वधु का
सूक्ष्म निरीक्षण किया
उसके शारीरिक शिल्प और गोपनीय तथ्यों का
तरह-तरह से परीक्षण किया
समीक्षात्मक नज़रों से कन्या कामिनी को देखा
तो अधरों पर नाच गई हँसी की रेखा
वह खुश होकर बुदबुदाया-
कन्या क्या है खेली खाई खाला है
जाम नहीं पूरी मधुशाला है
बॉस को निबटाने का पूरा मसाला है
उसने अपना टिपटिपाती टिप्पणी संपादकजी को टिपाई-
आदरणीय चंपक भाई
कन्या की काया की कसावट देखकर
विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि
रचना मौलिक है,जिसका अद्भुत शारीरिक विन्यास है
मेरी दृष्टि में लड़की एक ऐसा अप्रकाशित उपन्यास है
जिसका कि धारावाहिक रूप से
स्थाई स्तंभ में उपयोग किया जा सकता है
आप कहें तो वर्तनी सहेज दूं
और आवश्यक संपादन कर इसे आपके पास भेज दूं
संपादकजी ने टिप्पणी पढ़ी तो घूम गया भेजा
उन्होंने तुरंत एस.एम.एस.भेजा-
रचना महत्वपूर्ण है इसलिए आप
इसमें अपना संपादकीय कौशल हरगिज न दिखाएं
इसे मौलिक रूप में मेरे सामने लाएं
अच्छी लगी तो उपयोग कर लूंगा
वरना खेद सिहत अन्यत्र उपयोग के लिए वापस कर दूंगा
आप रचना देखकर कल्पनाओं के झूले में मत झूलना
और टिकट लगा लिफाफा साथ लाना मत भूलना
रचना संपादकजी के पास आई
साथ में टिकट लगा लिफाफा यानी पत्नी का भाई
आज भी संपादकजी के पास है
ये अलग बात है कि
रचना पत्रकारिता में नया व्याकरण गढ़ रही है
संपादकजी का संपादन कर रोज़ सिर पर चढ़ रही है।
पं. सुरेश नीरव
1 comment:
बहुत सुंदर कल्पना।
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