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Saturday, January 16, 2010

...गुमान मत रखना

तुम्ही हो एक मुसाफिर गुमान मत रखना
कभी भी पांव तले आसमान मत रखना

हवा में शब्द बहुत गड्ड- मड्ड होते हैं
हवा पे आँख तो रखना पर कान मत रखना

जहाँ पे बैठ के प्रहरी को नींद आ जाये
तुम अपने खेत में ऐसा मचान मत रखना

थकान होगी तो फिर घर की याद आएगी
सफ़र में मील के पत्थर का ध्यान मत रखना

मिलो, मिलो न मिलो, ये तुम्हारी मर्ज़ी है
मिलो तो फासले फिर दरमियान मत रखना

प्रस्तुति: अनिल (१६.०१.२०१० अप २.०० बजे)

2 comments:

dipayan said...

"Tumhi ho ek musafir, gumaan mat rakhna,
Kabhie bhi paaon taley aasmaan mat rakhna.."


bahut khoob likha.

Yasoni.... यासोनी…… said...

आप बहुत ही अच्छा लिख्ते है, दिन मे एक बार तो आप के ब्लोग पे आये बिना नही रहसकता ।