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Wednesday, January 13, 2010

मकर संक्रांति मुबारक हो

14 जनवरी का दिन उत्तर भारत मेंमकर संक्रांतिके नाम से मनाया जाता है जिसका महत्व सूर्य के मकर रेखा की तरफ़ प्रस्थान करने को लेकर है । इसे गुजरात तथा महाराष्ट्र में उत्तरायन कहते हैं, जबकि यही दिन आन्ध्र प्रदेश, केरल तथा कर्नाटक (ये तीनों राज्य तमिल नाडु से जुड़े हैं) में संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है । पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है । दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में पोंगल का त्यौहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का स्वागतकुछ अलग ही अंदाज में किया जाता है । सूर्य को पोंगल त्यौहार का प्रमुख देवता माना जाता है। तमिल साहित्य में भी सूर्य का यशोगान उपलब्ध है। सूर्य को अन्न धन का दाता मान कर चार दिनों तक उत्सव मनाया जाता है और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया जाताहै । दूसरे शब्दों में, यह त्यौहार कृषि एवं फसल से सम्बन्धित देवता‌ओंको समर्पित है । इस त्यौहारका नाम पोंगल इसलि‌ए है क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पोंगल कहलाता है। तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है‌अच्छी तरह उबालना। दोनों ही रूप में देखा जा‌ए तो बात निकल कर यह आती है कि‌अच्छी तरह उबाल कर सूर्य देवता को प्रसाद भोग लगाना । पोंगल का महत्व इसलि‌ए भी है क्योंकि यह तमिल महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है।

पशुधन पूजा में पोंगल पर्व बिल्कुल गोवर्धन पूजन की तरह है । नगर के बजाय गाँवों में यह पर्व ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है। इस समय धान की फसल खलिहान में आ चुकी होती है। चावल, दूध, घी, शक्कर से भोजन तैयार कर सूर्यदेव को भोग लगाते हैं। फसल के लि‌ए, प्रकाश के लि‌ए, जीवन के लि‌ए सूर्य के प्रति पोंगल पर्व पर कृतज्ञता व्यक्‍त की जाती है। बैलों और गौमाता के सींग रंगे जाते हैं। उन्हें स्वादिष्ट भोजन पकाकर खिलाया जाता है। सांडों-बैलों के साथ भाग-दौड़ कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी होता है। यह खतरनाक खेल है और बहादुरी की माँग करता है। वर्षों पूर्व पोंगल कन्या‌ओं द्वारा बहादुरी दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हु‌आ करता था। आज के आधुनिक बदलते परिवेश में पोंगल खेत और खलिहान के बजा‌ए ड्रा‌इंग रूम में टीवी के पर्दे पर सिकुड़ता जा रहा है। पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नववर्ष का शुभारंभ हो जाता है।

चार दिन का पर्व

इस पर्व के महत्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह चारदिनों तक चलता है। हर दिन के पोंगल का अलग अलग नाम होता है। यह जनवरीसे शुरू होता है। पहली पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज इन्द्र को समर्पित है । इसे भोगी पोंगल इसलि‌ए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहनेवाले देवता माने जाते हैं। इस दिन संध्या समय में लोग अपने अपने घर से पुराने वस्त्र, कूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं । यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुरा‌ईयों के अंत की भावना को दर्शाता है । इस‌अग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सींग का बना एक प्रकार का ढोल होता है। दूसरी पोंगल को सूर्य पोंगल कहते हैं। यह भगवान सूर्य को निवेदित होता है। इसदिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बना‌ई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नये धान से तैयार चावल, मूंग दाल और गुड़ से बनती है । पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल व गन्ना अर्पण किया जाता है और फसल देने के लि‌ए कृतज्ञता व्यक्‍त कीजाती है।

तीसरे पोंगल को मट्टू पोंगल कहा जाता है । तमिल मान्यता‌ओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लि‌ए ‌अन्न पैदा करने के लि‌ए कहा और तब से पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है । इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं उनके सींगों में तेल लगाते हैं एवं अन्य प्रकार से बैलों को सजाते हैं । बैलों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है। बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ोंकी भी पूजा की जाती है। कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानते हैं जिसमें बहनें अपने भा‌ईयों की खुशहाली के लि‌ए पूजा करती हैं और भा‌ई अपनी बहनों को उपहार देते हैं । चारदिनों के इस त्यौहार के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाताहै जिसे तिरूवल्लूर के नाम से भी लोग पुकारते हैं। इस दिन घर को सजाया जाता है। आम के पलल्व और नारियल के पत्ते से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है । महिला‌एं इस दिन घर के मुख्य द्वार पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं । इस दिन पोंगल बहुत ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है लोग नये वस्त्र पहनते हैं ‌और दूसरे के यहां पोंगल और मिठा‌ई वयना के तौर पर भेजते हैं । इस पोंगल केदिन ही बैलों की लड़ा‌ई होती है जो काफी प्रसिद्ध है। रात्रि के समय लोग सामुदायिक भोज का आयोजन करते हैं और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामना देते हैं ।





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