यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
Search This Blog
Wednesday, January 13, 2010
ज़मीं हिलती हुई मक़बूल अब महसूस होती है
मकबूलजी
ज़मीं हिलती हुई मक़बूल अब महसूस होती है। बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। और अनिलजी आप ने पत्थर के सनम से खूब मिलवाया है। बधाई। अनिल कुलश्रेष्ठ और बलराम दुबे जी ने धांसू फोटो भेजे हैं। सबको धन्यवाद
No comments:
Post a Comment