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Thursday, January 28, 2010

राहत इंदौरी की गज़ल


चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|

डुबे हुये जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|

हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|

इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,
बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|

झूटे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतियों से छीन के सच्चाई ले गया|

यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|

अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे सन्ग तो सौदाई ले गया|

अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उम्रों का देव सारी तवनाई ले गया|

1 comment:

Fauziya Reyaz said...

झूटे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतियों से छीन के सच्चाई ले गया

waah kya baat hai...bahut khoob