कुछ तंज बड़े गहरे उतर जाते हैं
शब्द रह जाते हैं इंसान गुजर जाते हैं
हमने देखे हैं वो फ़रिश्ते प्यार के
जो वादा करके भी मुकर जाते हैं
भरते हैं हुंकार जो आईने के सामने
ज़माने की घुड़की में डर जाते हैं
न तोड़ो ये धागा प्यार का इतरा के
टूट कर मोती जमीन पर बिखर जाते हैं
समझते हैं हम भी हैं नासमझ नहीं हैं
तेरे फेंके हुए खंजर किधर जाते हैं
प्रस्तुति: अनिल (२९.०१.२०१० सायं ५.४५ बजे )
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