तू किसी और की जागीर है ए जान -ए - ग़ज़ल
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ न चल
पहले हक था तेरी चाहत के चमन पर मेरा
पहले हक था तेरी खुशबू -ए- बदन पर मेरा
अब मेरा प्यार तेरे प्यार का हकदार नहीं
मैं तेरे गेसू -ए -रुखसार का हकदार नहीं
अब किसी और के शानो पे है तेरा आँचल
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ न चल
मै तेरे प्यार से घर अपना बसाऊँ कैसे
मैं तेरी मांग सितारों से सजाऊँ कैसे
मेरी किस्मत में नहीं प्यार की खुशबू शायद
मेरे हाथ की लकीरों में नहीं तू शायद
अपनी तकदीर बना, मेरा मुक़द्दर न बदल
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ न चल
मुझसे कहती हैं ये खामोश निगाहें तेरी
मेरी परवाज़ से ऊँची हैं ये पनाहें तेरी
और गैरत- ए -एहसास पे शर्मिंदा हूँ
अब किसी और की बाँहों में हैं बाहें तेरी
अब कहाँ मेरा ठिकाना है, कहाँ तेरा महल
लोग तूफ़ान उठा देंगे मेरे साथ न चल
प्रस्तुति: अनिल (३०.०१.२०१० अप ३.२५ बजे)
1 comment:
काफी अच्छी लगी आपकी लेखनी.आपके ख्यालात और शब्द अच्छे हैं.
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