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Sunday, January 31, 2010
कर्ण की घोषणा
मैं कर्ण बल्द श्री अधिरथ, एतत् द्वारा घोषणा करता हूँ कि मेरी और दुर्योधन की मित्रता आज से समाप्त समझी जाय ।
मेरी तबियत अब कुछ ठीक नहीं रहती लिहाजा मैं महासचिव पद से इस्तीफ़ा देता हूँ और अंग का राज्य भी वापस करता हूँ । मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे और दु:शासन के झगड़े में दुर्योधन द्वारा मेरा पक्ष न लिए जाने को लेकर मुझे भारी आघात पहुँचा जिसके कारण मेरी तबियत बिगड़ गयी ।
मुझे याद है, जब द्यूत-क्रीड़ा भवन में द्रौपदी जी को अपमानित किया जा रहा था तो मेरे भी मुख से कुछ अपशब्द निकल पड़े थे । यद्यपि उस घटना के लिए दुर्योधन और दु:शासन ही मुख्य अभियुक्त हैं तथापि मुझे अपने द्वारा कहे गए शब्दों का हमेशा पश्चाताप होता रहेगा । हो सके तो महारानी द्रौपदी मुझे माफ़ कर दें और कोई छोटा-मोटा पद देकर मुझे अपना सेवक स्वीकार करें । मैं प्रायश्चित करने को तैयार हूँ और पूर्ण निष्ठापूर्वक सेवा करते रहने का वचन देता हूँ ।
प्रस्तुति- प्रदीप शुक्ला
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2 comments:
यह पोस्ट तो आज ही विवेक सिंह जी ने भी लिखी है, स्वप्नलोक में
भई अभी मुश्किल से 10 मिनट पहले ही ये कविता स्वपनलोक पर पढ के आ रहे हैं...इतनी जल्दी :)
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