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Friday, January 22, 2010

जनेश्वर मिश्र का जाना यानी लोहिया की विरासत का अंत


जनेश्वर मिश्र नहीं रहे . जैसे ही यह समाचार टी वी पर दिखा एकदम से भोंचक्का रह गया.पिछले कुछ वर्षों से वह यदा कदा खराब स्वास्थ्य के कारण निष्क्रिय हो जाते थे परंतु कुछ ही दिनों में फिर से स्वस्थ होकर सक्रियता के साथ काम में जुट जाते थे. मालूम हुआ कि अभी दो दिन पहले ही इलाहाबाद में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था व सांकेतिक गिरफ्तारी दी थी. साठ के दशक से वह समाजवादी आन्दोलन के एक प्रमुख स्वर थे. उन्हे राम मनोहर लोहिया के सच्चे अनुयायी के रूप मे गिना जाता था .और इसीलिये उन्हे छोटे लोहिया का प्यारा सम्बोधन दिया गया था.दिल्ली में उनके आवास पर उनके नाम की पट्टी तो छोटी सी थी परंतु एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा थाजिस पर लिखा रहता था 'लोहिया के लोग'. कद काठी में भी लोहिया जैसे ही दिखने वाले जनेश्वर जी एक प्रभावी वक्ता थे. जनसभाओं में जब भी मंच पर आते अपने अनोखे तर्कों और तथ्यों से भरे भाषण से जनता को मंत्र मुग्ध करने की असीम क्षमता का भरपूर उपयोग करते और सुनने वाले प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे.

1969 की पहली कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश के जिन प्रमुख राजनेताओं को जनता ने राजनैतिक क्षितिज पर स्थापित किया उनमें जनेश्वर मिश्र प्रमुख थे. ( आज की समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह तब नये नये विधायक ही बन पाये थे ,और वह भी जनेश्वर मिश्र को अपना गुरु मानते थे). पहले फूलपुर ( जहां से एक बार पंडित नेहरू जीत कर आये थे) और बाद में वी पी सिंह सरीखे व्यक्ति को इलाहाबाद से हराकर लोकसभा में पहुंचे. अनेक बार राज्य सभा में रहे.छोटे लोहिया उन गिने चुने विपक्षी नेताओं में थे, जो लगभग हर एक गैर कांग्रेसी सरकार ( भाजपा के अतिरिक्त)में मंत्री रहे.

जनेश्वर जी अजातशत्रु की तरह थे. उन्होने मित्र ही बनाये और राजनीति मे दुश्मन कोई नहीं बनाया. हालांकि बाद के वर्षों में समाजवादी आन्दोलन के बिखरने व भ्रष्ट होने से खिन्न ज़रूर थे . पार्टी में उनके कद व वरिष्ठता की वावज़ूद अपेक्षित महत्व नहीं मिला किंतु फिर भी अपने चेले मुलायमसिंह की पार्टी में बने रहे.

जनेश्वर जी ने केन्द्र सरकार में अनेक विभागों का दायित्व सम्भाला किंतु काजल की कोठरी से बिलकुल बेदाग ही निकले.

उनके जाने से समाजवाद का एक सच्चा प्रवक्ता हमारे बीच से चला गया जिसकी पूर्ति सम्भव नही है क्यों कि अब वह समाजवाद ही कहां रह गया है, जिसके लिये जनेश्वर मिश्र जैसे लोग संघर्ष करते रहे.

अनेक अवसरों पर मेरी उनसे भेंट हुई. 1992 मे 17 अप्रेल को जब चन्द्रशेखर जी का जन्मदिन भोन्डसी ( गुड़्गांव) में मनाया गया तब मैं भी मौज़ूद था.तब मैं समाजवादी जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव था और हम सब ( चन्द्रशेखर जी, जनेश्वर जी ,मुलायम सिंह जी एक ही पार्टी में थे और समाजवादी पार्टी की स्थापना नहीं हुई थी.) भोजन आदि के बाद कार्यकर्ता जाने लगे थे.चन्द्रशेखर जी ने साथ मेज़ पर बैठ्कर मेरे लिये व जनेश्वर जी के लिये पत्तल मंगवाई. उसी अवसर का चित्र ऊपर है, चित्र में जनेश्वर जी व चन्द्रशेखर जी के बीच में मैं भी, दोनों अपनी अपनी पत्तल पकडे भोजन के इंतज़ार में.
जनेश्वर मिश्र जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.

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