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Friday, January 8, 2010

इसाक अश्क

बिना टिकिट के
गंध लिफ़ाफ़ा
घर-भीतर तक डाल गया मौसम।
रंगों
डूबी-
दसों दिशाएँ
विजन
डुलाने-
लगी हवाएँ
दुनिया से
बेखौफ हवा में
चुम्बन कई उछाल गया मौसम।
दिन
सोने की
सुघर बाँसुरी
लगी
फूँकने-
फूल-पाँखुरी,
प्यासेअधरों पर खुद झुककर
भरी सुराही ढाल गया मौसम।
प्रस्तुतकर्ता राजमणि

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