पिछले कोई ५-६ दिन से मेरा कंप्यूटर खराब था लिहाज़ा न तो ब्लॉग ही देख पाया और न ही कुछ पोस्ट कर पाया। रात कंप्यूटर ठीक हुआ तो ब्लॉग देखा। नीरव जी के कामयाब इटली दौरे से वापसी का पता चला। मगर इस दौरे के संस्मरण न देख कर निराशा हुई। आज उन की हाश्य ग़ज़ल भी देखी। पढ़ कर तबीयत खुश हो गई। इस ग़ज़ल को पढ़ कर एक शेर कुलबुलाया है। अर्ज़ करता हूँ।
हालात का है मारा पर जोश कम नहीं है
चलता है देखो फिर भी रस्ते बदल बदल के।
आज बतौर हाजिरी के अकबर इलाहाबादी की ग़ज़ल के कुछ शेर पेश हैं।
दिल मेरा जिस से बहलता, कोई ऐसा न मिला
बुत के बंदे तो मिले, अल्लाह का बंदा न मिला।
गुल के ख्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र- फ़रोश
तालिबे- जमजमे- बुलबुले- शैदा न मिला।
वाह क्या राह दिखाई है हमें मुर्शद ने
कर दिया क़ाबे को ग़म और कलीसा न मिला।
सैय्यद उठ्ठे जो ग़ज़ल ले के तो लाखों लाए
शैख़ कुरआन दिखाता फिरा, पैसा न मिला।
मृगेन्द्र मक़बूल
2 comments:
लाजवाब प्रस्तुति धन्यवाद्
shukriyaa nirmalaa kapila ji,
maqbool
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