कभी ज़िन्दगी में हम तुम ऐसी भी तुक मिलाएँ
कभी तुम हमें सुनाओ, कभी हम तुम्हें सुनाएँ।
प्याले से तुम पिलाओ, चुल्लू से हम पिलाएँ
तुम हम में डूब जाओ, हम तुम में डूब जाएं।
बरसात का है मौसम, मदमस्त हैं घटाएँ
तुम गीत छेड़ो लब से, हम दिल से गुनगुनाऐं।
ऐश तो करो तुम पर याद ये भी रखना
बूढ़े बदन में देखो, कीड़े न बिलबिलाएँ।
खुजली की दवाओं पर क्यों अपना धन लुटाएँ
कभी तुम हमें खुजाओ, कभी हम तुम्हें खुजाएँ।
मक़बूल ने सुनाई अपनी ग़ज़ल जहां भी
भूतों ने छोड़ा डेरा, भगने लगीं बलाएँ।
मृगेन्द्र मक़बूल
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