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Thursday, August 19, 2010

तबीयत से खुजालो मुझको

 एक टपोरी ग़ज़ल-

भरी बरसात का मौसम है न डालो मुझको

मैं दबी खाज हूं तबीयत से खुजालो मुझको


आपने बूते पे जिसके है ये कुर्सी पाई
मैं वही जूता हूं संसद में उछाले मुझको


इससे पहले की उड़ाले कोई छापे में कहीं
मैं कमाई हूं हवाले की चुरालो मुझको


कहीं झुंझला के न वो वाट लगा दे मेरी
मत परेशान करो इतना उजालो मुझको


डैडी खंडाला गए ले के तेरी मम्मी को
और मौसम भी है बिंदास बुलालो मुझको


मैंने टपकाए है बंदे वही जो तुमने चुने
ढूंढती आज पुलिस घर में छुपालो मुझको


गर फुटपाथ पे सोया तो कुचल जांउगा
अपनी बाहों के ठिकानों में सुलालो मुझको।


पंडित सुरेश नीरव


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