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Friday, September 10, 2010

अयोध्या से लौटकर

आदरणीय नीरवजी..
आपकी प्रेरणा से मैं अयोध्या हो आया हूं। वहां विश्वहिंदूपरिषद के राष्ट्रीय महासचिव से भेंट हुई। मैंने मंदिर मुद्दे पर उनसे बात की है जो बड़ी रोचक और जानकारीपूर्ण है। मैं इसे प्पकाशित करवाना चाहता हूं। कृपया सहयोग दें और मार्गदर्शन भी। आपका दंडकारण्य पर आलेख पढ़ा मज़ा आ गया। आपके प्रयासों और समर्पण को सलाम।जयलोकमंगल..
मुकेश परमार

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