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Tuesday, September 7, 2010

श्रद्धेय नीरवजी,
आपने बताया है कि नैमिषारण्य साक्षी बना था संत दधीचि के अनुपम त्याग का। जहां उन्होंने अपनी अस्थियां दान कीं इंद्र को वज्र बनाने के लिए। और इसी नैमिषारण्य को बनने से पहले ही डूबने से बचानेवाली मां शक्तिरूपा ललिता का मंदिर भी यहीं है। जो देश के सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मां ललिता ने न केवल नैमिषारण्य को डूबने से ही बचाया बल्कि जब महिषासुर नामक राक्षस ने इस क्षेत्र में अपना आतंक फैलाया तो देवताओं की प्रार्थना पर शक्तिरूपा मां ललिता ने भीष युद्ध कर महिषासुर का वध कर नैमिषारण्य को भयमुक्त कर दिया। इसी कारण इनको महिषासुरमर्दनी भी कहा जाता है।

आज यह पवित्र तीर्थ स्थल तीर्थ से ज्यादा पिकनिक स्पाट बनता जा रहा है। यह एक चिंताजनक बाद है। ब्रह्माजी ने इसे कलयुग के प्रभाव से मुक्त क्षेत्र बताया था फिर ऐसा क्यों हो रहा है।



डां प्रेमलता नीलम

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