आपने नैमिषारण्य के नाम करण के संदर्भ में बड़ी रोचक जानकारी दी है। इससे बढ़िया और क्या हो सकती है कि आप ब्लाग के जरिए अमूल्य जानकारियां हम सबको दे रहे हैं। यह दृष्टांत बड़ा रोचक है-
वायुपुराण में ऋषियों ने ब्रह्माजी से एक निरापद स्थान की याचना की थी। जहां ऋषि निर्विघ्न पूजा पाठ कर सकें। ऋषियों ने मानव कल्याण और विश्वशांति के लिए निर्बाध यज्ञ करने के लिए एक ऐसे ही भूखंड की मांग की थी जहां कलयुग का तनिक भी प्रभाव न हो और ऋषियों को निर्बाध पूजा का परिवेश मिल सके। ऋषियों की प्रार्थना सुनकर ब्रह्माजी ने तत्काल मनोमयचक्र की सृष्टि की और इसे भगवान शिव को अर्पित करते हुए पृथ्वी पर फेंक दिया। ब्रह्माजी ने ऋषियों को बताया कि यह चक्र जिस जगह पर जाकर रुकेगा वह भूमि ही तपस्या के लिए उचित भूमि होगी। ऋषि-मुनि उस चक्र के पीछे-पीछे दौड़ते रहे। हजारों मील की यात्रा के बाद यह मनोमाया चक्र ऐसे स्थान पर आकर रुका जहां एक विशाल पहिए के आकार का वन फैला हुआ था। संस्कृत में पहिए को नेमि कहते हैं और जंगल को अरण्य इसीलिए इस वन का नाम नैमिषारण्य पड़ गया।
आपको धन्यवाद..
डा. मधु चतुर्वेदी
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