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Saturday, October 9, 2010

योगोन्द्र मौदगिल की कविता

हाय री निडंबना..
जलसे-जलूस मेले
बीच बाजार या अकेले
स्त्री देह
मात्र नयन पिपासा को झेले
हाय री विडंबना
चरित्र की होठी
कहीं पर भी तो नहीं दिखती
बहन या बेटी
हर ओर प्रेयसियां या वारांगनाएं
कोरा नेत्रविलास
या कुंठित भोगेच्छाएं
सत्य में जीवित नहीं हम
हो चुका है आत्मा का मरण
क्योंकि बेचारा अंतःकरण
बच भी कैसे पाएगा
अरे
जैसा खाएगा वैसा ही तो निभाएगा।
योगेन्द्र मौदगिल (पानीपत)
मो.9896202929

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