Search This Blog

Saturday, October 9, 2010

दहलीज और बेटियां

*************************************************************************************
हैदराबाद से डाक्टर रमा द्विवेदी की क्षणिकाएं-
(१)
बेटियों के लिए
एक दहलीज से
दसरी दहलीज तक का सफर तय करने में
सदियां बीत जाती हैं
उस दहलीज को अपना बनाने में
और सच तो यह है कि
जिंदगी बेमानी-सी लगती है
क्योंकि कभी-कभी
उस दहलीज के
हम भी नहीं बन पाते हैं।
(2)
आधुनिक घरों में नहीं रही दहलीज की परंपरा
इसलिए न कोई मर्यादाएं हैं और
न जीवन आचरण के मूल्य
और नई पीढ़ी दिग्भ्रमित हो भटक रही है
मूल्यहीनता की दिशा में।
-रमा द्विवेदी
१०२,इंपीरियल मनोर अपार्टमेंट, बेगमपेट,हैदराबाद
टेलीफोनः ०४०-२३४०४०५१
प्रस्तुतिः ओ चांडाल
)))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))

No comments: