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Saturday, October 9, 2010

झूठे वादों की अंगीठी भी बुझ गई अब तो



नवरात्र की शुभकामनाएं...
आज जयलोकमंगल में औंकार गुलशन,योगोन्द्र मौदगिल और आदरणीया डाक्टर रमा द्विवेदी की रचनाएं पढ़ीं मन प्रसन्न हो गया।
0 नीरवजी का व्यंग्य और मधु चतुर्वेदी की प्रस्तुति और भगवानसिंह हंस के महाकाव्य का खुमार उतरा भी नहीं था कि इतनी रोचक सामग्री और मिल गई.
चलिए आज हम भी ग़ज़ल के कुछ शेर कहे देते हैं-
कितनी ठिठुरन है गली,कूचे औ बाजारों में
कितनी मंहगी है धूप मुफलिसों की राहों में
झूठे वादों की अंगीठी भी बुझ गई अब तो
राख ही राख है लंबे सफर की राहों में
एक कंबल का भी सहारा आपसे न हुआ
गर्म बिस्तर का सपना था सुनहरी राहों में
कहें हम आपको बेद्द या इस मौसम को
हम तो मारे गए चलके वफा की राहों में
कोई किऱण भी दिखाई नहीं देती नीलम
अंधेरा और घना है वतन की राहों में।
डाक्टर प्रेमलता नीलम
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