आपने ब्लाग को
- मुकेश परमार
आ खामोशी तुझको ओढ़ूंफिर अपने बारे में सोचूं
भूखा रहकर रात गुजारूं
फिर जहान के भीतर झांकूं
आवाजों में क़ैद हूं
ख़ामोशी से कैसे बोलूं
सब शब्दों के दीप जलाकर
धरती के आंगन में रख दूं
बर्फीले मंजर बिखरे हैं
कैसे अपनी आग समेटूं
मुझको तेरी खबर नहीं है
खुद से इतनी दूर हुआ हूं।
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