“जिस क्षण हम दूसरों के विचारों से डरने लगेंगे,दूसरे के सामने उसकी सचाई बताने में संकोच करने लगेंगे और हम अपने उद्देश्य और सिद्धांतों के प्रति उदासीन खामोशी अख्तियार कर लेंगे तो उसी क्षण हम दिव्यप्रकाश की उस धारा में नहाने से भी वंचित हो जाएंगे जिसके आलोक में हमारी आत्मा दीप्त-प्रदीप्त हो सकती थी।.”
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