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Sunday, October 31, 2010

शब्द-शब्द मंत्र हैं। अक्षर-अक्षऱ ऋचाएं हैं

आदरणीय प्रशांत योगीजी
  आज आपका  आलेख और  विचार पढ़े। शब्द-शब्द मंत्र हैं। अक्षर-अक्षऱ ऋचाएं हैं। शब्द जब भी आत्मा को छूकर आते हैं, वाणी बनजाते हैं। देववाणी। बुद्ध की वाणी,महावीर की वाणी,लाओत्से की वाणी। कन्फ्यूशिअस की वाणी। कबीर की वाणी,ओशो की वाणी..या फिर प्रशांत योगी की वाणी। वाक के आसन पर जब सरस्वती विराजती है तो शब्द वाणी बनते हैं..वरना शब्द और ध्वनि तो सभी के पास हैं..
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श्री भगवान सिंह हंसजी
आपने हीरालाल पांडेयजी का जो चित्र-चित्रण किया है वह लाजवाब है।एच.जी.वेल्स ने एक जगह कहा है कि यदि दीवार है और दीवार पर कील गढ़ी है तो ये आदमी के ऊपर निर्भर करता है कि वो उस कील पर क्या टांगता है।अपनी टाई,कोट या लंगोट। आपने एक तस्वीर के आधार पर विचारों की इतनी बढ़िया पोशाक टांगी है कि उसे कोट,कमीज,सूट क्या कहा जाए मैं समझ नहीं पा रहा हूं मगर जो भी है वो है माशाअल्ला। भरतचरित के महानायक को ढेरों सलाम..
पंडित सुरेश नीरव
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