
आदरणीय भाईसाहब,
आपका साक्षात्कार पढ़कर आनंद आ गया। पूरा लेख पढ़ता चला गयाऔर गया। उसमें बहता चला आप उन साहित्यकारों में हैं जिनके पासभाषा विचार और विचार दोनों ही हैं। आपको पढ़ना ही की एक यात्रा पर है।एक अच्छा लेखक चेतना यात्रा में विश्राम लेने के लिए किसी खास विचार पर अल्प विश्राम के लिए रुक भी सकता है,पर वह हमेशा रुका नहीं रहेगा। विचार का यह दायरा ही कुछ समय बाद उसे इस दायरे को तोड़ने की उसे प्रेरणा देने लगेगा। देता ही है। लेखक को एक परिपक्व दृष्टि यायावरी से मिलती है। यायावरी का अर्थ ही है-यात्रा। यह यात्रा विचार और शरीर दोनों की ही हो सकती है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन इस यायावरी के आदमकद उदाहरण हैं। साम्यवाद से लेकर बौद्ध दर्शन तक फैली है उनकी चेतना। समर्थ रचनाकार के जीवन में विचार एक मोड़ होता है मंज़िल नहीं।
आपको बधाई और प्रणाम
मुकेश परमार
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