Search This Blog

Tuesday, October 26, 2010

आदरणीय नीरवजी,
पालागन...। 
जो विद्रोही होगा वह मूलतः हर व्यवस्था का विरोधी होता है। व्यवस्था को नकारना ही उसके लिए मूल्य होता है। और इस मूल्य को चुकाने के लिए वह कोई भी मूल्य चुका सकता है। आपने बहुत ठीक कहा है कि-
विद्रोह कबीर के जीवन का मूल्य है।महज़ विचार नहीं। लेकिन बाद में लोग सोच-समझकर  कबीर को भी  विषेष विचारधारा के एक खांचे में फिट करने लगते हैं।  जबकि वह किसी विचारधारा विशेष का तमगा नहीं चाहते थे। वह इसके लिए लिख भी नहीं रहे थे।  तुलसी राममय होकर लिख रहे थे। उनके रोम-रोम में राम उतर चुके थे। वह किसी अकादमी के निर्देश पर नहीं लिख रहे थे। उन्हें अपने लेखन से किसी पुरस्कार की अपेक्षा भी नहीं थी।  और न वह इस लिए लिख रहे थे कि कोई हिंदू संगठन उन्हें अपना नेता मान ले। राम तुलसीदास के लेखन का मूल्य बन गए थे। राम की मर्यादा उनकी दृष्टि का मूल्य है। इस मूल्य से उनकी संलग्नता है। प्रतिबद्धता नहीं। उन्होने राम पर इस लिए नहीं लिखा कि उन्हें किसी के कहने पर राम पर लिखना है। उनका अस्तित्व ही राममय हो गया था इसलिए उन्होंने राम पर लिखा। इस मूल्य के प्रति संलग्नता ने ही उनके सृजन को विराटता दी। उन्हें लोकमान्य बनाया। उन्हें सार्वदेशिक और सार्वकालिक बनाया। तुलसी और कबीर अपने मूल्यों के प्रतिनिधि हैं किसी विचारधारा विशेष के नहीं। बिहारी के लिए श्रंगार लेखन का मूल्य रहा। उन्होंने यह सोचकर अपने लेखन को नहीं बदला कि भक्ति प्रधान और कृषि प्रधान देश में उनके लेखन को लोग कहां रखेंगे। अब दिन-रात राजदरबारों में रहनेवाला बिहारी गांव पर,गरीबी पर लिखता तो यह उनका लेखकीय पाखंड ही होता। अनुभूति का संसार नहीं होता। उन्होंने जो जिया वही लिखा। इसीलिए बिहीरी बिहारी हैं। वह अपने मूल्यों के प्रति नितांत इकहरे हैं। अभिव्यक्ति की ईमानदारी उनके सृजन का मूल्य था। रहीम भी दरबार में हैं। मगर वे दरबारी कवि नहीं हैं। लेखन के उनके अपने मूल्य थे। वह अपने मूल्यों के प्रति समर्पित थे, किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं। यही फर्क है बिहीरी,रहीम और चंद्रबरदाई में। यही फर्क है एक कवि और भाट में। मूल्यों के बजाय जो रचनाकार विचार या व्यक्ति विशेष के प्रति  समर्पित होता है दूसरे अर्थों में वह भी भाट ही है।
आज कवियों की जगह भाट ही अकादमियों में पद पाते हैं और पुरस्कार भी। पर कवि का असली पुरस्कार जनता द्वारा मिली लोकमान्यता ही है। अचछी बहस के लिए बधाई..
हीरालाल पांडे
---------------------------------------------------------------------------------------------

No comments: