जयलोकमंगल लगभग रोज़ ही पढ़ता हूं और आनंद लेता हूं। लेख तो रोचक होते ही हैं साथ में प्रतिक्रियाएं और भी रोचक होती हैं। खासकर भगवान सिंह हंस की शैली तो भक्तिकालीन कवियों की वाणी की तरह पवित्र गलती है। उदाहरण के लिए-
आदरणीय पंडित सुरेश नीरवजी का हास्य-व्यंग्य का आलेख -समय के कसाई के आगे हम सभी बकरें हैं। उन्होंने यह व्यंग्य भैयाजी की रिटायरमेंट को लेकर किया है। व्यक्ति की रिटायरमेंट और मृत्यु समयबद्ध है। कर्मचारी की रिटायर्मेंट का समय निश्चित है और जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु का समय भी निश्चित है। उन्होंने ठीक ही कहा है कि समयरुपी कसाई सबको खा जाता है। ऐसा गहरा चिंतन और कोई नहीं कर सकता है और न किसीकी के बस की बात है ,यह तो विश्ववन्दित विद्वान एवं शब्दपारिखी पंडित सुरेश नीरवजी ही कर सकते हैं, बता सकते हैं और कह सकते हैं। उनको बहुत-बहुत बधाई। जय लोकमंगल।
प्रशांत योगीजी का लेख पसंद आया। विचार यथार्थपरक हैं।
हीरालाल पांडे
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