ग़ज़ल-
हवा की जुल्फ में उलझे सुनहरी किरणों के लच्छे
मदरसे में ज्यों शबनम के उछलते कूदते बच्चे
हंसी बच्चों के होंठों पर नया रेशम-सा बुनती है
इन्हें देखा है जब से फूल सब लगने लगे अच्छे
हंसी चेहरे की देखी है तो उटी है लौ चिरागों में
ये चेहरे पर ढुलकती बूंदें हैं या मोती है सच्चे
बरफ की उंगलियां थामे टहलती धूप पर्वत पर
नई खुशबू की आँखों में हैं लम्हैं फूल से कच्चे
हसीं यादों की छत पर है टहलती भोर-सी लड़की
कहां जाओगे ऐ नीरव तुम इसकी धूप से बचके।
पंडित सुरेश नीरव00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000

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