इस बीच कई नए सदस्य भी बने। मैंने उनकी गतिविधियां भी देखीं। बहुत अच्छा लगा। नए सदस्यों में अशोक शर्मा (हास्य कवि),मजू ऋषि,विमलकांत चतुर्वेदी (सहायक संपादकःनंदन) कविता वाचनक्वी को मैं बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे अपनी लेखनी से ब्लाक को संजाएगे-संवारेंगे। पंडितजी आपका परिवार यूं ही दिन-रात बढ़ता रहे मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं...
०० श्री प्रशांत योगी के प्रवचन कुछ अलग हटकर हैं। और उस पर नीरवजी की टिप्पणी तो सोने पर सुहागा हैं। उन्होंने आस्था की अच्छी व्याख्या की है।
00 अमित हंस की रचना बहुत अच्छी लगी। कहन में एक नयापन है। और बहाव भी है। उन्हें कुछ और रचनाएं ब्लाग पर देनी चाहिए।०० श्री विश्वमोहन तिवारी का शंबूक पर और रामवनवास पर शोधात्मक आलेख पढ़ा,जिसने कई भ्रांतियों को तोड़ा। फेसबुक पर उनका अच्छा आलेख पढ़ने को मिला।जहां उन्होंने अधकचरे लोगों की प्रचारप्रियता पर सटीक प्रहार किया है। और आस्था के लेख में आस्था के एक और आयाम से उन्होंने हमें रू-ब-रू कराया है।
०० पंडित सुरेश नीरव के धुंआधार व्यंग्य लेखों ने मजा बांध रखा है। लगता है कि लेखों की फैक्ट्री खोल रखी है पंडितजी ने। इतने सारे विचार आखिर उनके दिमाग में आते कहां से हैं। और ये दिमाग किस ब्रांड का है ये पता लगाया जाना चाहिए.
०० मकबूलजी गायब हैं। क्यों, क्या बीमार हैं। भगवान उन्हें सेहतमंद बनाए।
00 नीलमजी और प्रलयजी नियमित रहे।
०० पथिकजी ने फोटो पेश किए और मुकेश परमार ने सिर्फ अपना फोटो दिखाया।
00 नए लोगों में विकास हंस ने भी खूब लिखा।
०० मधु चतुर्वेदी ने आपनी हाजिरी ठीक-ठाक लगाई।
00 मंजू ऋषि और विमलकांत चतुर्वेदी के भी सिर्फ फोटो ही देखने को मिले हैं। शायद कभी कुछ लिखें भी।
इन्हीं उम्मीदों के साथ--
दीपावली की विलंबित ताल में शुभकामनाएं
ओ चांडाल



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