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Thursday, November 11, 2010

मंजु ऋषि के पास द्रवीभूत संवेदनाएं हैं

आज जयलोकमंगल में कविता के एक नए हस्ताक्षर के आगमन से बड़ी प्रसन्नता हुई। कविता की पहली शर्त होती है-संवेदना। मंजु ऋषि के पास द्रवीभूत संवेदनाएं हैं।लगा जैसे मेरे-तुम्हारे और सारे संसार के दर्द को शब्दों में ढालने का काम इन्होंने किया है। इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया-
दिल में हुई वेदना को
गर नयन समझ गए होते
रुकी होती ह्रदय की गति
गर तड़प समझ गए होते
लहू न बनता श्वेत द्रव्य
गर आँसूं बहा लिए होते
खुल जाते बंद नाडियों के द्वार
गर रुदन समझ गए होते
एक अच्छी कविता के लिए मंजु को बधाई..
दया निर्दोषी
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