दिल में हुई वेदना को
गर नयन समझ गए होते
न रुकी होती ह्रदय की गति
गर तड़प समझ गए होते
लहू न बनता श्वेत द्रव्य गर आँसूं बहा लिए होते
खुल जाते बंद नाडियों के द्वारगर रुदन समझ गए होते
एक अच्छी कविता के लिए मंजु को बधाई..
दया निर्दोषी
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