दाढ़ी-मूंछ बढाकर लाखों बहुरूपिए सड़कों से लेकर आश्रम तक रेंगते-बिलबिलाते मिल जाएंगे मगर हर साधु कोई गौतम बुद्ध थोड़े ही हो जाता है। वैसे चाहता हर महत्वाकांक्षी आदमी है कि वह कुत्ता हो जाए और पूंछ हिलाकर वह भी नौकरी में प्रमोशन,व्यापार में धन और राजनीति में उच्चपद पर पहुंच जाए मगर कितनें हैं जो समग्रता से परम कुत्तत्व को उपलब्ध हो पाते हैं। तमाम आधे-अधूरे लोगों का जमघट है,यह समाज। जहां ना आदमी पूरा आदमी है और ना पूरा कुत्ता।
नीरवजी अच्छीखबर ली है,आपने। बधाई...
हीरालाल पांडेय
No comments:
Post a Comment