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Friday, November 19, 2010

भावों के वेद पड़े -वो नर ,भाव हीन नर केवल जड़ !     संवेदनाएं  ही मनुष्य  को मशीन से अलग होने  का बोध  कराती हैं ! .......मेरे  आलेख को मानों लय के पंख मिल गए  ! शब्दों को सरगम की संजीवनी मिल गई  ! ........." आपके विचार दिल को छू जाते हैं ! "......एक दस्तक तो है ,कुछ स्पंदन तो हुआ ! मैं  भविष्य  में विचारों  को और भी प्राण-मय बनाने की कोशिश करूंगा  ताकि  मेरे शब्द  दिल को छूकर  न निकल जाएँ , बल्कि अंतस में कहीं गहेरे उतर जाएँ  ! आत्मा का विषय बन जाएँ ! 
अधिकार ने कहा प्यार से-
जब तू किसी का हो जाता है 
तो क्यों मुझको भी पाना चाहता है 
जो तेरा मेरा नाता है 
क्यों प्रेमी समझ नहीं पता है 
मुझे (अधिकार )जताकर क्यों पगला  
तुझको भी खोता जाता है !
 .........................अधिकार तो अनुबंध हैं  और अनुबंध मात्र शरीर के तल पर होते हैं ! प्रेम  तो स्वतंत्र है ,जहाँ समझोतों के लिए कोई जगह नहीं होती  ! अनुबंधों में प्रेम कुम्हला जाता है  ! अनुबंध उम्र जीने की मजबूरीयाँ हैं ,प्रेम जीवन जीने की कला है !.......शीरी -फरहाद ,रोमियो-जूलियट .लैला-मजनूं ,सोनी-महिवाल ,......ये सब एक दूसरे को भोतिक रूप से पाने की  प्रतियोगितायों के प्रतीक हैं ,......प्रेम तो खोने का नाम है ! मिटने कि कला है प्रेम ! और एक बार मिट गए  तो शरीर बेमानी हो जायेंगे  ! फिर किसी महिवाल को नहर खोदने की  आवश्यकता नहीं पड़ेगी  !
मंजु ऋषि  की कवितायें  जीवित  दस्तावेज  हैं, जिन्हें  पढ़ा  नहीं जिया जाता है !
                                                                                 प्रशांत योगी  
  
 
 



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