न दे बाँग अभी मुर्गे
न चीं-ची कर चींचीं
होले से बह पवन बसंती
के सोया हैनटखट
अभी दुबक कर रजाई में...
सुश्री मंजुजी आपकी नन्ही-सी कविता बहुत अच्छी है। बालदिवस के वात्सल्य से भरपूर।
और श्री भगवानसिंह हंसजी आप ने नीरवजी के लिए लिखा कि वह पद्य से ज्यादा गद्य में ज्यादा सजीव होते हैं तो मुझे तो ऐसा लगता है कि वे शब्दों के शाधक हैं। शब्द उनकी अभिव्यक्ति में नृत्य करते हुए आते हैं,विधा चाहे गद्य की हो या पद्य की। बहरहाल आपने जो भावकलश प्रस्तुत किया है,वह भावुक संवेदनाओं से लवरेज है। और एक ईमानदार आदमी का बयान भी। आजकल भरत चरित क्यों नहीं लिख रहे। उसे भी लिखते रहें,मेरा अनुरोध है। पालागन..
हीरालाल पांडे
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1 comment:
हीरालाल पाण्डेय जी आपको मेरा प्रणाम
होंसला अफ़जाई के लिए शुक्रिया
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