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Sunday, November 7, 2010

देर आयद दुरुस्त आयद

मकबूलजी बहुत दिनों बाद आप ब्लाग पर दिखे। तम डूबे जंगल में जैसे डूबी हुई मशाल. पक्कू भाई का गीतांश अच्छा लगा। मगर गीत ये नए साल का है आपने उसे दीवाली पर क्यों याद किया,लगता है पहले आप पहले इसे भूल गए थे.। चलिए देर आयद दुरुस्त आयद..मेरे पालागन..

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