हास्य-व्यंग्य-
बिन ब्लैक मनी सब सून
पंडित सुरेश नीरव
राष्ट्रहित में गोपनीय धन को सार्वजनिक करने की हमारी सरकार की अपील का देशभक्ति की प्रेरणा से ओत-प्रोत वीरांगना फिल्म अभिनेत्रियों,बार-बालाओं और माडल्स पर गहरा प्रभाव पड़ा। और उन्होंने स्वेच्छा से अपनी गोपनीय संपदा को सार्वजनिक करने का संकल्प ले लिया। फलस्वरूप मल्लिका शेरावत और राखी सामंत-जैसी विभूतियां प्रकाश में आईं। अंतर्ऱाष्ट्रीय अर्थशास्त्री अमर्त्य लेन के मुताबिक यदि भारत के कालेधन का जनहित कार्यों में निवेश कर दिया जाए तो हिंदुस्तान अमेरिका को पछाड़कर सुपर पावर बन सकता है। इन देशभक्त अभिनेत्रियों ने अपने ही बूते पर इंडिया को अमेरिका से आगे ले जाने का संकल्प ले लिया है। इनकी प्रचंड प्रेरणा से देश की और भी तमाम सोने के बदन और चांदी की नज़रवाली कंचन कामनियों ने उदारवादी अर्थतंत्र में उदारता से अपने गोपनीय धन को सार्वजनिक करने की ठान ली है। एक होड़-सी लगी है,अपनी गुल्लक में छिपी गोपनीय धन की सारी-की-सारी चिल्लर को देशहित में सार्वजनिक करने की। देशभक्ति का ऐसा ज्वार इंडिया के इतिहास में पहले और कभी नहीं देखा गया। ऐसे गोपनीय धन को उजागर करने का काल्पनिक आंदोलन हमारे पूर्वजों ने खजुराहों की पत्थर प्रतिमाओं में जरूर कभी तराशा था। हमारे पुरखों ने जो सपना देखा था,आज वो सपना साकार हो रहा है। योचता हूं कि पूर्वजों की छाती ये सब देखकर ठंडी होकर हिमांक बिंदु पर आ गई होगी। पत्थर की वे प्रतिमाएं, आज निकलकर देश के विकास की रेंप पर लहराने लगी हैं। देशप्रेम की ये भावना कोई बच्चों का खेल नहीं है,इसे समझाने के लिए ये बलिदानी कन्याएं खेल के मैदान में चीअरलीडर्स बनकर खिलाड़ियों को समझा रही हैं कि तुम देश के लिए खेलते हो,मगर पैसा बटोरकर तहखानों में छिपा लेते हो। अरे हम नारियों को तो देखो कैसे सीना खोलकर अपना सबकुछ देश पर लुटा रही हैं।
हमारे आगे तुम लोग कालेधन के सट्टा बाजार के सिर्फ झींगुर हो। हम गोरियों के पास तो जो भी गोपनीय था, बड़े पारदर्शी ढंग से हमने सब-का-सब डिक्लेयर कर दिया है। तुम लोगों को क्या कहें-बुरी नज़रवाले तेरा मुंह काला। मगर जिनके चेहरे पहले से ही काले हैं वो क्या और कहां मुंह काला करेंगे। काजल की कोठरी में सबके मुंह काले हैं। किसी के चेहरे पर हवाले की कालिख है तो किसी के चेहरे पर घोटाले की कालिख है। हम स्त्रियां तो साक्षात लक्ष्मी हैं। इसलिए पैसे के चक्कर में कभी कोई मुन्नी बदनाम नहीं हुई है। अरे मुन्नी तो जब भी बदनाम होती है, अपनी मस्ती में बदनाम होती है। और होती नहीं है तुम लोगों द्वारा कर दी जाती है। मगर इस रुसवाई को भी मुन्नियां रोकर नहीं गाकर बताती है- अरे मुन्नी बदनाम हुई जालिम मैं तेरे लिए। कालेधनवाले अपना कालाधन तो देखते नहीं हैं, खूंसट हमारे कजरारे नैनों को देखकर फिकरे कसने लगते हैं- कजरारे-कजरारे.. तेरे कारे-कारे नैना। अरे नासमिटो हमारे कारे-कारे नैना पर नजर गढ़ाते हो,अपने कालेकारनामों और कालेधन पर नजर नहीं जाती, तुम्हारी। अरे कभी सोचा है कि तेरा क्या होगा कालिया। हम गोरियों के कालू जादू का असर मालुम है,अच्छे खासे मर्द हमारे आगे बकरे बन जाते हैं। एक काली के चरणों में कितने बकरों की बलि चढ़ती है। इसका अंदाजा है तुम लोगों को। अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। क्योंकि आजतक किसी भी सरकार ने इसका रिकार्ड नहीं रखा है। सारी-की सारी बलियां आफ द रिकार्ड ही हैं। वैसे भी सरकार की नज़र में तो बलि प्रथा कब की बंद हो गई।
फिर काहे का रिकार्ड। सरकार बिलकुल सही है। सरकार हमेशा सही होती है। सरकार को गलत कहने का मतलब है स्त्री जाति का अपमान। क्योंकि मुहब्हत की रियासत की सरकार हम ही होते हैं। तुम लोगों को तो सरकार की नियत में भी दाल में कुछ काला नज़र आएगा। उस सरकार की नियत में जो हर काम पारदर्शी ढंग से करती है। अपना कालेधन का खजाना तो बताते नहीं हो, उलटे काली जवान से हम लोगों को ही कोसते रहते हो। और अपने इस कालेधन को महिमामंडित करने के लिए अपने नाम तक कालेखां और काले राम रख लेते हो। कालेखां और काले राम दोनों ब्लैक नाइट में बैठकर ब्लैक लेबिल के घूंट लगाते हैं। वाह कैसा सांप्रदायिक सदभाव है। मजहब की कोई दीवार इस काली बस्ती में नहीं होती है। कितना भाईचारा है यहां तुन्हारे कालेबाजार में। जहां दाउद भी भाई कहलाता है। जितने भी आज काले कारोबार से जुड़े हैं सब भाई कहलाने लगे हैं। जब सरकार भाईचारा बढ़ाने की बात करती है तो ये भाई अपने चारे को बढ़ाने की जुगाड़ में सारे देश को ही चारागाह बना डालते हैं। कभी जिन्हें अंग्रेज साहब काला आदमी कहकर हिकारत से बुलाते थे, आज वही काले बाबू बनकर इंग्लैंड ओर स्विटजरलैंड के काले बाजार में अपना सिक्का चला रहे हैं। अब तो विद्वानों ने भी तुम्हारी तारीफें करना शुरू कर दी हैं। उनका मानना है कि यदि देश में कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था नहीं होती तो वैश्वीकरण के इस दौर में इंडिया कबका मैक्सिको बन गया होता या फिर सोवियत रूस की तरह टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया होता। सरकार आभारी है तुम कालेधन कुबेरों की।क्योंकि कालाधन नहीं होता तो देश बिखर जाता और जब देश बिखर जाता तो सरकार कहां से बची रह जाती। ये देश और सरकार दोनों तुम्हारे ही बलबूते पर टिके हैं। फिल्मों में उकाला-उकाला..मेरा मुंह काला जो गीत लोकनर्तक गाते,दिखाए जाते हैं वो इसी कालेधन का पावन कीर्तन है। हमें सब मालुम है। अब अगर सरकार रिक्वेस्ट कर रही है तो तुम लोगों का भी तो ये नैतिक फर्ज बन जाता है कि कुछ चिल्लर दिखाकर उसे भी खुश कर दो। जैसे कि हम कर रहे हैं। सिगरेट के धुओं के बादलों के पीछे से काले चश्मों को धारण किए जो सज्जन पुरुष फिल्मों में दिखाए जाते हैं, वे तो रेडीमेड कपड़ों के शोरुम में सजे मिट्टी के पुतले हैं। कालेधन के असली कारखानें तो आप लोग ही हैं। जिनके पैसों से फिल्म इंडस्ट्री चलती है। एक आद्यात्मिक गूढ़ रहस्य बताएं- आप की और भगवान की दोनों की लीला एक जैसी है। सर्वशक्तिमान होकर भी पर्दे के पीछे रहते हैं, आप लोग। और आपका कालाधन भी कितना नटखट नटवरलाल है- कभी एअरपोर्ट पर आते-जाते किसी शरीफ मुसाफिर के ब्रीफकेस में प्रकट हो जाता है तो कभी हम-जैसी गरीब फिल्म अभिनेत्रियों के बाथरूम में निर्लिप्त भाव से चीरहरण का लाइव शो देखता हुआ बरामद होता है। हमेशा उछल-कूद करता रहता है यह कालाधन। इधर पकड़ो तो उधर निकल जाता है। मूड कर आए तो फार्महाउस को छोड़कर झुग्गी झोंपड़ी में चला जाता है। जस्ट फार चेंज। कब तक काकटेल और रेव पार्टियों से बंधा रहे। पालेटिकल पार्टियों के दफ्तरों से लेकर घर्मशाला,गौशाला,पाठशाला और मधुशाला सभी इसकी लीलास्थली हैं। कृष्ण भी काले थे। यह धन भी काला है। दोनों के इर्द-गिर्द गोपिया रमण करती हैं। सब कालेधन का ही प्रताप है। खालिस ग्वाले के पास कंस को छोड़कर कन्याएं क्यों जातीं। सब समझते हैं। दूसरों के बारे में हल्की टिप्पणियां करना हमारे संस्कार नहीं हैं। कंस एक अदद पूतना नाम की गर्लफ्रेंड के मोह में ही फंसा रहा। समझ ही नहीं पाया कि एक राजा को छोड़कर छंटा हुआ स्त्रीधन एक ग्वाले के पास कैसे पहुंच रहा है। शायद उसके लिए कालेधन का अक्षर भैंस बराबर था। वैसे तो उसे तभी समझ लेना था जब उसकी जेल का पूरा तंत्र मैनेज कर कृष्ण जी की सकुशल स्मगलिंग कर दी गई थी। किसी भी युग में हो आप सिपाही को हरे-हरे नोट दिखाओं तो वह वारदात के समय आंख बंद कर लेता है। आज भी इस गैरवशाली परंपरा का प्रचलन जारी है। उस वक्त भी जेल के सिपाहियों को ऐन मौके पर प्रायोजित नींद आ गई थी। सब कृष्णजी की पार्टी की लीला थी। कंस मूर्ख था। समझ नहीं सका कि यह सब कैसे हो रहा है। अब अगर उस समय टीवी होता तो जरूर कंस को कृष्णजी की ये धमकी सुनने को मिल जाती कि- छोटा बच्चा जान के हमसे मत टकराना रे..कुड़ुर-कुड़ुरकुम। किसी के पास कालाधन हो और वो मीडिया को मैनेज नहीं कर पाए ऐसा मुमकिन नहीं। जब आज दो कौड़ी के नेता और माफिया मीडिया को मैनेज कर लेते हैं तो क्या भगवान नहीं कर पाएंगे। मीडिया आजतक वैसा ही है जैसे उनके समय में था। मीडिया मैनेज करके तो हमारे रजनीश जी भगवान हो गए थे फिर कृष्णजी तो सच्ची-मुच्ची के भगवान थे। आज भी मीडिया ने भकितभाव से तमाम भगवान बना रखे हैं। तब भगवान चक्रधारी थे अब चैनलधारी हैं। जरा सोचिए एक साधारण से ग्वाले को द्वारिका कोई लाटरी में नहीं मिली थी। कहां से बन गई। आप में है इतनी कुव्वत। गीता पढ़ के बना लो। खाली गीता के उपदेशों के बल पर तो साबह उनकी भी नहीं बनती। इसका पाठ्यक्रम इतना सरल नहीं है कि हर कोई समझ सके। सुदामाजी को पूरा फ्लैट गिफ्ट में दे दिया। कितने धांसू बिल्डर रहे होंगे। गोपियों का ग्लैमर और समुद्र में तैरती द्वारिका। सोचकर ही सुरसुरी हो जाती है। कितनी हैरतअंगेज है एक ग्वाले की रंगबाजी की कथा। मछेरे दाउद और हाजी कुली मस्तान के खूब समझ में आ गई। रघुकुल रीत सदा चलि आई...। ब्लैक मनी संग राखिए बिन ब्लैक मनी सब सून। सरकार ब्लैकमनी उजागर करने को इज्जतदार लोगों से कह रही है,आलू-प्याज खरीदनें में मंहगाई का रोना रोते हुए खर्च हो जानेवालो भुखमरों से नहीं। ये वो ब्लैकमनी है जिसके होने पर गांव की कल्लो ब्लैकब्यूटी,ब्लैकरोज़ और ब्लैक ट्रेज़र के खिताब से नवाजी जाती है। सब ब्लैकमनी की बलिहारी है। इसीसे शिब्बू सौरेन है,इससीसे जरदारी है। ये ब्लैकमनी है जो सरकार पर भारी है। ब्लैकमनी की ऋतु में न सावन सूखे होते हैं न भादों हरे होते हैं। इस ऋतु के तो हर दिन हरे-भरे होते हैं। जिसके चेहरे पर कालेधन का डिठौना लग जाता है उसे कानून की नज़र नहीं लगती। ईमानदारी की अला-बला उससे दूर भागती है। कालेधन के आगे राजा भी भिखारी है। अगर ये पल्टी खा जाए तो आदमी एन.डी.तिवारी है। ये काले रंग और ढंग का ही जलवो-जलाल है कि हमारी काली माई ने गोरेपन की तमाम क्रीमों को नकार कर अपनी ब्लैक ब्यूटी ही मेंटेन की। यह काले रंग और कालेधन का ही कमाल है कि हमारी कालीमाई शिवजी की छाती पर चढ़कर तांडव की प्रेक्टिस करने की जांबाजी दिखा देती हैं। यह इनर्जी लेबल इन्हें ब्लैक ने ही दिया था। ब्लैक इज बेस्ट। यूं भी आज के दौर में हर अच्छी चीज़ ब्लैक में ही मिलती है। जिसे सरकार नकली कह रही है आज वही मुद्रा असली है। असली नकली है। नकली असली है। क्योंकि वो ब्लैक है। इसलिए गर्व से कहो कि हम इंडियंस काले हैं..दिलवाले हैं और कालेधनवाले हैं। सरकार ने कहा है तो उसे कालाधन जरूर दिखाएंगे और साथ में इसीके बूते उसे आंखें भी दिखाएंगे। हे कालेधन के मयखाने की बार-बालाओ.. देशभक्ति की इस मुहिम में आप अकेली नहीं है, हम मेले में-अकेले में हर जगह, हर वक्त हर तरह से आपके साथ हैं। आखिर देश के लिए हमारा भी तो कोई फर्ज है।
आई-204,गोविंदपुरम,गाजियाबाद
मो.9810243966



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