
आदरणीय नीरवजी,
आपका आलेख काल के गाल में अकाल एक नई जमीन का व्यंग्य है। आपने अंग्रेजी के शब्दों को लेकर जो क्रीड़ा की है,वह बहुत ही रोचक है। हिंदी का काल अंग्रेजी का काल और फिर भूतकाल,वर्तमानकाल,भविष्यकाल और फिर अकाल,ये सब आपने बहुत ढंग से ट्रीट किये हैं। कहने का मतलब ये कि आप नए विषय और नए प्रतीकों के सौदागर हैं। और व्यंगय-विनोद की खदान हैं। मेरे प्रणाम..
डाक्टर प्रेमलता नीलम
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