श्री अभिषेक मानव,
स्वार्थ और प्रतियोगिता से त्रस्त आदमी अपने मूल्यों को बेचकर जिस तरह के शॉर्टकट आज अपना रहा है,वहां वह दो पैरोंवाला दोपाया जानवर ही रह गया है,उसका आदमी तो कहीं खो गया है। ऐसे भ्रष्ट मगर ताकतवर लोगों के छद्म के तिलिस्म को तोड़कर आपने उन्हें हकीकत के चौराहे पर सरेआम नंगा करके खड़ा कर दिया है। यही व्यंग्य की सार्थकता होती है। खोए हुए आदमी में मानवता की पुनर्स्थापना के सात्विक और सफल प्रयास के लिए बधाई..पंडित सुरेश नीरव
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