
आदरणीय नीरवजी
आपका व्यंग्य बहुत-बहुत-बहुत अच्छा लगा।
अगर देश में गद्दार नहीं होते तो काहे को देश गुलाम होता और काहे को हमारे कई क्रांतिकारी मुखबिरों के लालच के कारण शहीद होते।
श्री विश्वमोहन तिवारीजी की रचना बहुत उकसाती है।
कविता में मानो व्यवस्था परिवर्तन के सूत्र पिरो दिए हों।
ओमप्रकाश चांडाल
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