सूर्योदय -
सूर्योदय की छटा अनूपी । रश्मित अवध धरा बहुरूपी। ।
रक्तवर्ण दृग क्षितिज किनारा। जागे बल वृन्द जन दारा। ।
प्रातः काल है। सूर्योदय की छटा बड़ी निराली है। अयोध्या की प्रकाशित धरा बड़ी सुन्दर लग रही है। क्षितिज का किनारा लाल रंग का दिखाई दे रहा है। बच्चे, वृद्ध न्र और नारी सभी जाग गए हैं।
लहराती सब फसल सुहानी। पातों से झारि सनेह पानी। ।
स्वागत में नतमस्तक बालीं। ठाढ़ी उत्सुक रूपम झालीं । ।
लहराती हुई फसल बड़ी सुहावनी लग रही है। पत्तों से ओस की बूँदों का पानी ऐसा लग रहा है मानों आँखों से स्नेह का झर रहा हो और उसके स्वागत में खेत की बालें नतमस्तक हो रही हों तथा उत्सुक कड़ी होकर अपने रूप को झाल रही हों।
त्यागें बिहंग ब्रंद बसेरा। छिटकहिं प्रकाश पूर्ण सवेरा। ।
तम तिरोहित तारिका डूबी। भरत लला की निंदिया ऊबी। ।
पक्षियों ने अपने घोंसलें छोड़ दिए हैं। प्रकाश छिटक रहा है। पूर्ण सवेरा हो गया है। अँधेरा लुप्त हो गया है। तारे डूब गए हैं। ऐसे अद्भुत समय में भरत लला की निंदिया ऊब जाती है।
ललना पलना से उठ भागे। खेले खेल महल के आगे। ।
महारानी बिलोक सिहावें। बाल दुलार भूपहिं दिखावें । ।
लाल पलना से उठकर भागता है और वह महल के आगे खेल खेलता है। महारानी कैकेयी उसको देख-देख कर बड़ी सिहा रही है और यह बाल दुलार राजा को दिखा रही है।
सरिता की पावन पय धारा। डुबकी लें जन मनुज अपारा। ।
रवि को अर्घ्य और जयकारा। हे देवा! सर्व जगहिं तारा । ।
सरयू सरिता की पावन धारा बह रही है। सुबह-सुबह असंख्य जनसमूह नदी में डुबकी लगा रहा है। लोग सूर्य भगवन को अर्घ्य दे रहे हैं। और जय सूर्य तथा जय सरयू के जयकारे लगा रहे हैं। कहते हैं -हे देव! सब जग आपने ही तार दिया है।
रचयिता - भगवन सिंह हंस
प्रस्तुतकर्ता- योगेश विकास
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