परंपराओं पर श्री प्रशांत योगीजी का लेख पढ़ा. लेख विचारोत्तेजक है। और उन्होंने बड़े सधे हुए ढंग से परंपराओं के विनाशकारी प्रभाव को दर्षाया है। परंपराएं यदि बर्बरता का पर्याय बन जाएं औप परंपरा के नाम पर ओनर किलिंग होने लगे तो यह किसी पढ़े-लिखे समाज का आचरण तो नहीं कहा जा सकता और ऐसे सड़े-गले परंपरा के कचरे को हमें फेंक देना चाहिए। योगीजी की शैली बहुत अच्छी है।
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पंडित सुरेश नीरव का व्यंग्य शोकसभा का कुटीर उद्योग पढ़ा। सचमुच समाज के छद्म को नकारता है,यह व्यंग्य। इससे पहले वाला व्यंग्य झूठ की मोबाइल अकादमी पिद्दीराजा उन सड़े हुए नेताओं की बदबूदार सोच का खुलासा करता है,जो खबरों में रहने के लिए कुछ भी बकवास बेशर्मी से करने से नहीं चूकते। ऐसे नेताओं पर तो देशद्रोह के मुकदमें चलना चाहिए। एक क्रांतिकारी व्यंग्य के लिए बधाई।
डॉक्टर मधु चतुर्वेदी
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