श्री नीरवजी
आपका व्यंग्य बहुत अच्छा लगा। इन पंक्तियों का चुटीलापन मन को खूब भाया-
एक छोटेपन में बड़ी-बड़ी गलतियां बड़े करीने से दुबक जाती हैं। छोटा होना ही हमेशा परम प्रोफिट का सौदा रहा है। बड़ों की लुटिया तो चुल्लूभर पानी में ही डूब जाती है। उस प्रचंड लघुवंशी की विराट बातें सुनकर मेरे शरीर में छोटेपन का जो अदम्य संचार हुआ, उसके सुफल से लघुवंशीजी ससम्मान अस्पतालवासी होकर मोक्ष को प्राप्त हुए और मैं व्यंग्य लेखक बनकर छोटेपन की संस्कृति का महा प्रचारक बन गया। एक छोटे आदमी ने मेरी मौलिक जिंदगी में कितना बड़ा काम किया,उसके लिए आभार व्यक्त करने का बड़ा काम मैं कतई नहीं करूंगा क्योंकि अब मैं बाकायदा आईएसआई मार्क्ड छोटा आदमी बन चुका हूं।
दया निर्दोषी
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