रंजन जैदी
राज्यवार देखें तो हम पाएंगे कि हर साल इस देश में लगभग १५ लाख से भी अधिक शिशु-कन्याओं को जन्म लेते ही मार दिया जाता है.
पिछले दो दशकों में देश के अनेक भागों में लड़की की चाह न रखने वाले मध्यवर्गीय परिवारों में लगभग एक करोड़ गर्भपात करवाए गए. ये खुलासा लन्दन के एक अख़बार 'इंडीपेनडेंट' ने किया था. पत्र के अनुसार हर साल भारत में ५ लाख मादा भ्रूणों की हत्याएं कर दी जाती हैं.
इसी तरह का खुलासा 'इंडो-कनाडियन सर्वे' और 'आईएमए' की रिपोरटें र्भी पहले कर चुकी है जिनमें बताया जाता रहा है कि भारत में प्रति वर्ष ५ लाख बच्चियों को दुनिया में आने का वीजा ही नहीं दिया जाता और योजनाबद्ध तरीके से ५० लाख भ्रूणों की हत्याएं कर दी जाती हैं.
इसके पीछे के कारणों में बलात्कार, बढ़ते यौनापराध और आधुनिक विचारों की उछ्रंखता को माना जाता है.
'इंडियन काउन्सिल आफ मेडिकल रिसर्च' की रिपोर्ट की बात करें तो हमें पता चलेगा की भारत में ४ वर्ष से काम उम्र के ६ करोड़ बच्चों में से ३ करोड़ १८ लाख बच्चे भयंकर रूप से कुपोषण और बीमारियों से ग्रस्त हैं और जितनों का जन्म होता है उनमें से ३० प्रतिशत बच्चों का वज़न अनुमानित वज़न से काफ़ी काम होता है क्योंकि उनकी माताओं में लगभग ८७ प्रतिशत महिलाएं ऐसी होती हैं जिनके शरीर में खून की कमी होती
है और ६० प्रतिशत बच्चे एनीमिक हो जाते हैं.
सदी के अंतिम दशक में देखा जाए तो गर्भपात नियमों में १९ देशों ने कुछ नर्म रुख अपनाया लेकिन पोलैंड के रवय्ये में कोई परिवर्तन नहीं आया.
अलबत्ता नेपाल में गर्भपात को अवश्य दंडनीय अपराध में शामिल किया गया. १५२ देशों में गर्भपात नियमों प़र जो सर्वे करवाया गया था, उससे यह भी पता चला कि नेपाल की लगभग दो तिहाई जेलों में तो ऐसी महिलाओं की तादाद सर्वाधिक है जिन्होंने अवैध रूप से गर्भपात करवाया या करवाने में सहयोग दिया था.
सर्वे के अनुसार वैश्विक देशों प़र निगाह डाले तो हम देखेंगे कि आस्ट्रिया, अमेरिका और जर्मनी में तो वहां की सरकारों ने गर्भपात की सुविधाएँ ही समाप्त कर दी हैं.
लेकिन भारत में भ्रूण-हत्या जैसे जघन्य अपराध का व्यवसायीकरण हो गया है. हमें इस बड़ी समस्या प़र अपनी गहरी निगाह रखनी होगी और दोषियों को दण्डित कराना होगा, तभी हम इस समस्या से सीधे तौर प़र मुकाबला कर विजय पा सकेंगे.अल्पसंख्यक टाइम्स से साभार
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