ऐसा लगा सकता है क़ि यहाँ कविता 'मौन बहुमत' के लिए कही गई है, किन्तु यहाँ सत्य केवल उनके लिए है जो यहाँ मानते हैं और जीते हैं :
होम करेंगे तो यह तय है
फिर से हमारा हाथ जलेगा
मगर जरुरत पडी तो
सबसे पहले आतुर मन स्वाहा बोलेगा
ज्यों ही अधरों को खोलेगा
मौन मुखर होग।
पथिक जी काश क़ि यह कविता मौन बहुमत को पहुंचे
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