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Monday, January 17, 2011


समय


समय ने देखे हैं कुछ झगडे
एक पीढ़ी के दूसरी पीढ़ी से
जो पनपते हैं
समय में आए अंतराल से
उन झगडों में कोई विषय नहीं होता
कोई दोषी नहीं होता

वो होता है समझ का फेर
सोचने के ढंग में बदलाव
जो लाया होता है समय ने
खुद को बदल कर

समय के बदलने पर
कर लेते हैं हम अपनों से लड़ाई
मन को खट्टा
इस बात से अनभिज्ञ
कि न तो हम बदले हैं
न विचार
न हमारा प्यार
न हमारे सपने
अगर कोई दोषी है
अगर कोई बदला है
तो वो है समय

1 comment:

Anonymous said...

good one. keep it up

gulshan