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Sunday, January 16, 2011



क्या हम भोगवाद के गुलाम हैं? क्या हम सच्ची प्रगति और समृद्धि नहीं चाहते? प्रगति क्या है? क्या प्रगति केवल बिजली, कपड़े, कार, जूते, शराब, दवाइयां आदि से ही नापी जा सकती है? क्या सुख मापा जा सकता है? क्या भोगवाद तथा अनैतिकता और अपराधों में सीधा या तिरछा सम्बन्ध है?
अच्छे प्रश्न उठायें हैं आदरणीय तिवारी जी ने ! एक और प्रश्न और ......समाधान ?....
धन्यवाद आदरणीय प्रशान्त योगी जी॥
भोगवाद की प्रक्रृति ही होती है गुलाम बनाने की।

सामान्यतया हम तो स्वयं को शरीर,मन और बुद्धि का सामासिक रूप ही मानते हैं, और सुख की खोज को आदर्श , यु एस ए ने तो यह अपने संविधान में टंकित कर दिया है..
समस्या यह है की सुख क्या है?
हम स्वभावतया मन की इच्छाओं को पूरा करना ही सुख समझते हैं..मन तो इन्द्रियों का स्वामी है और वह अपनी प्रजा की इच्छाएँ पूरी करना अपना स्वाभाविक कर्त्तव्य समझता है..उसे बुद्धि ही कुछ समझा सकती है, यदि बुद्धि इतनी विकसित हो
भोग तो हमारे शरीर की प्रकृति है, जीवन की आवश्यकता है॥ और इससे इम्द्रियाँ, मन और बुद्धि सुख पाती हैं॥
किन्तु हम अनंत सुख की कामना करते हैं..और इसलिए अनंत भोग करना चाहते हैं..अनंत भोग हम कर नहीं सकते क्योंकि संसाधन सीमित हैं और इन्द्रियाँ भी सीमित सुख ही दे सकती हैं..और भी यह प्रकृति सदा परिवर्तनशील है, अत: हमारा मन भी बदलतारह्ता है इसलिए हम सुख के खोज की घुड़दौड़ में लगे रहते हैं॥ वृद्धावस्था में तो इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं, अत: भोग की इच्छा करने वाले का बुढापा दुखदायी होता है.. अनंत सुख नहीं पाते॥
आज के समय में प्रगति भी इन्हीं भोग के साधनों के विस्तार को कहते हैं, जब की प्रगति तो उस अनंत सुख के प्राप्त करने की दिशा में बढ़ने को कहना चाहिए..आज सुख का माप यही भोग के संसाधन की मात्रा हो गया है॥
भोग मनुष्य को स्वार्थी तथा स्वकेंद्रित बनाता है और अधिकाधिक भोग की इच्छा उसे राक्षस बनाती है..उसे अपराध की और ले जा सकती है..
हमें यह सीख तो मिलना चाहिए की भोग में सुख खोजने अर्थात भोगवाद में सुख नहीं है..कम से कम अनंत सुख तो नहीं है..
तब अनंत सुख कहाँ है?
अनंत सुख तो हमारे अंदर है , जिन खोजा तिन पाइयां॥
एक प्रश्न यह भी तो है की हम कौन हैं॥
इन दोनों का उत्तर एक ही है॥
इसके खोज के अनेक मार्ग हैं॥
भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग , योग मार्ग , निष्काम कर्म योग मार्ग आदि आदि॥
यह विषय तो गहन है और संभवत: आपस में बैठ कर ज्ञान प्राप्त करना अधिक व्यावहारिक होगा..

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