अभिषेक मानव,डाक्टर मधु चतुर्वेदी,डाक्टर प्रेमलता नीलम,दया निर्दोषी,अरविंद पथिक,भगवान सिंह हंस और आदरणीय बीएल गौड़ साहब की उपस्थिति से मैं प्रसन्न हुआ हूं। कई लोग पुनः दिखाई दिए। यह एक शुभ लक्षण है।
यह स्वतः स्फूर्त है या कोई यौगिक चमत्कार
जो भी हो सुखद है...
आज प्रस्तुत है एक ताज़ा
ग़ज़ल-
हम नहीं मिलते हमीं से एक अरसा आजकलरूह में रहने लगा है एक डर-सा आजकल
दर्द के सेहरा में भटके आंख में आकर टिके
आंसुओं को मिल गया है एक घर-सा आजकल
दर्द के पिंजरे में कैदी उम्र का बूढ़ा सूआ
लम्हा-लम्हा जी रहा है इक कहर-सा आजकल
बर्फ के घर जन्म लेकर प्यास से तड़फा किए
जी रहा हूं रेत में गुम इक लहर-सा आजकल
फूल-पत्ती-फल हवाएं साथ अब कुछ भी नहीं
ठूंठ में जिंदा दफन हूं इक शजर-सा आजकल
इस हुनर से जान ले की दूर तक चर्चा न हो
दोस्त मीठा हो गया है उस जहर-सा आजकल
हो जहां साजिश की खेती और फरेबों के मकान
आदमी लगने लगा है उस शहर-सा आजकल।
पं. सुरेश नीरव
No comments:
Post a Comment